सर्दी के मौसम पर निबंध-1 (200 words)
दशहरे का त्योहार आने से दसपन्द्रह दिन पहले सर्दी आरम्भ हो जाती है। कातिक, अगहन मग्घर), पौष और माघ-चार महीने सर्दी रहती है । जाड़ा बढ़ते-बढ़ते अरहर और मटर के पौधों में लालपीले फूल लगने लगते हैं । अलसी के खेत नीले फूलों से लद जाते हैं । गन्ने के खेत में गन्ने इतने ऊँच हो जाते हैं कि उनके पीछे खड़ा आदमी दिखाई नहीं देता। सर्दी आरम्भ होते ही खुली छत पर सोने वाले कमरों के अन्दर सोने लगते हैं।
बालिकाएँ और बालक अपनेअपने स्वेटर निकालकर पहनने लगते हैं । ठण्डी हवाएं चलने लगती हैं । सवेरेशाम अधिक ठण्ड होती है । तब बालक कोट आदि पहन कर बाहर निकलते हैं । बालिकाएँ शाल लेकर बाहर जाती हैं । सर्दी के दिन छोटे होते हैं ।- कब दिन हुआ, कब साँ, पता ही नहीं चलता। जाड़े की रात अधिक ठण्डी होने के कारण कोई काम नहीं हो पाता। अत: दिन में ही जल्दी-जल्दी काम कर लेना चाहिए ।
जब सर्दी बढ़ जाती है, तो सोते हुएकम्बल में भी ठण्ड लगती है तब लोग रजाइयाँ लिहाफ) ओढ़कर सोते हैं । बेचारे बेघर लोग जाड़े में काँपतेठिठुरते हैं। सवेरे काफी ठण्ड पड़ती है । तब चाय पीकर ही चैन पड़ता है । गरम पेय (चाय, दूध काफी आदि) अच्छे लगते हैं । सर्दी में भूख भी बढ़ जाती है। और खाया-पीया पच जाता है ।
पुरुष गरम सूट पहनकर काम पर जाते हैं । किसान लोग पुआलउपले, लकड़ी आदि जलाकर आग तापते हैं, तब उनकी ठण्ड दूर होती है । अधिक सर्दी में दाँत बजने लगते हैं । हाथ सेककर शरीर में गर्माइश आती है । धनी लोग घरों और दफ्तरों में बिजली के हीटर जलाते हैं । लड़केलड़कियाँ खेल के मैदान में घण्टों खेलते रहते हैं ।
फिर भी नहीं थकते। इन दिनों बादाम, पिस्ता, काजूतिलगोजे किशमिश, खजूरमूंगफली आदि खाना अच्छा लगता है। शीतकाल में पढ़ाई खूब होती है। अतविद्याथीं इन्हीं दिनों पढ़ाई की सारी कसर पूरी कर लेते हैं ।
सर्दी के मौसम पर निबंध-2 (400 words)
भारत में विभिन्न प्रकार की ऋतुएँ क्रमानुसार आती हैं। जाड़े की ऋतु वर्षा ऋ की समाप्ति पर आती है। नवंबर से लेकर फरवरी तक ठंडा मौसम रहता है। विशेषकर दिसंबर और जनवरी के महीने में अत्यधिक ठंड पड़ती है। इतनी ठंड कि लोग ठिठुर। लगते हैं। लोग गर्मी प्रदान करने वाली वस्तुओं की शरण में जाते हैं। ठंड आयी, सर्द हवाएं चलने लगीं। मनुष्य ठिठुर गए, अन्य जीवों को भी राहत नहीं। सभी धूप में रहने के लिए आतुर हो उठेमनुष्यों ने गर्म लबादे ओहेओवरकोट स्वेटर और ऊनी कपड़ों से सुसज्जित होना लोगों की विवशता बन गईपक्षी अपेक्षाकृत गर्म स्थलों में प्रवास के लिए उड़ान भरने लगेपशु भी सुस्त हुए धूप में लेट गए सब अपने-अपने आश्रय में दुबके बैठने लगे। आसमान में सूर्यदेव मद्धिम हो गएउनकी गर्मी को मानो ग्रहण लग गया। बादलों ने तो उनकी रही-सही शक्ति भी छीन ली। दिन छोटे हुएरातें लंबी हुई।
प्रातकाल सब जगह ओस ही ओसफूलों और पतों पर जलकण मोती के दानों से दिखाई देने लगे। इस समय ठिठुरते हुए ही काम करन पड़ाकुछ आग जलाकर चारों ओर बैठ गए। गर्म चाय के कई दौर चलेपर स इतनी बेदर्दी कि कोई असर ही नहीं। गर्म पानी से ही नहाना पड़ा। दिन चढ़ा, सूर्य देवता ने कुछ असर दिखाया। लोग गुनगुनी धूप का आनंद लेने लगे। पर यह क्या, अलसाई सह फिर जल्दी ही घिर आईपक्षी अपने नीड़ों की ओर भागे। गौएँ गौशालाओं में दुबकी गृहस्थों ने अंगीठी की शरण ली और वृद्धों ने मोटे कंबल ओढ़े। शीत लहर की मार किसी पर भी पड़ सकती है। पर खान-पान का सुख तो जाड़े में ही मिलता है।
बंदगोभी, सेममटरफूलगोभी, आलूमूली, गाजरटमाटरलौकी आदि सब्ज़ियाँ इस मौसम में खूब फलती हैं। सेब संतरापपीता, अंगूरअनार जैसे फलों से तो बाजार पट जाते हैं। शरीर को गर्मी देने वाले तिल इसी ऋतु में पैदा होते हैं। गन्ने का रस और गुड़ शीत ऋतु की देन हैं। आयुर्वेद लोगों को शीत ऋतु में उष्ण जलपान, तिल और रूई का सेवन करने की सलाह देता है। इनका सेवन करने वाले शीत ऋतु में स्वस्थ बने रहते हैं। इस ऋतु में जो खाया । सो हजम हो गया। अत: इसे शरीर में शक्ति संचय का काल माना जाता है।
शीत ऋतु में कीटाणुओं का प्रकोप कम हो जाता है। ठंड से मच्छर मर जाते हैं। और मक्खियों की संख्या भी घट जाती है। लोग प्राय: स्वस्थ रहते हैं। संक्रामक बीमारियों का असर कम हो जाता है। यदि लोग कुछ सावधानियाँ बरतें और ठंड से बचें तो इस ऋतु में आनंदपूर्वक रहा जा सकता है। शीतकाल में जनसमुदाय को कार्य करने में कई प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
कुहासे के कारण आवागमन बाधित होता है। वायुयानों की कई उड़ानें द्द करनी पड़ती हैं या वे विलंब से चलती हैं। रेलसेवाओं का भी यही हाल होता है। सड़कों पर वाहनों की रफ़्तार कम हो जाती है। उधर किसान भी कुहासे और पाले से परेशान दिखाई देते हैं। उनकी फ़सल ओले और पाले से नष्ट हो जाती है। कवि कहते हैं ‘आलस भर दी सर्दी ने यह मौसम बेदीं।’ पर उत्साही लोगों की कमी नहीं। सर्दी है तो क्या हुआ, श्रम से थकावट तो कम हुई, पसीने से लथपथ तो न होना पड़ा।
सर्दी ने तो उनके लिए कठिन मेहनत करने का सुनहरा अवसर प्रदान कर दिया। वे रजाई और चादर उतार अपने काम में लग गए। सर्दी ने बकाया कायों को मेहनत करके पूरा करने का अवसर प्रदान किया शीत ऋतु में त्योहारों का भी बहुत महत्व है।
दीपावली इस ऋतु के स्वागत में मनाई गई। बिहार और झारखंड में फिर छठ पर्व आयाउत्तर भारत में 14 जनवरी को लोहड़ी और तिलासंक्रांति मनाई गईदिसंबर में ईसाई समुदाय ने क्रिसमस का त्योहार मनाया। लोगों ने बड़े दिन की छुट्टियाँ मनाईफिर गणतंत्र दिवस और वसंत पंचमी का त्योहार आया। लोग वसंत के सुहावने मौसम का आनंद लेने लगे और शीत ऋतु की समाप्ति हो गई। दो थे।
सर्दी के मौसम पर निबंध-3 (500 words)
हमारा देश प्रकृति के रंग बिरंगे दृश्यों को विभिन्न ऋतुओं के माध्यम से उपस्थित करता है, ये ऋतुएं है- बसंतग्रीष्म, पावस, शरद, हेमंत और शिशिर। किन्तु हम ऋतुओं को स्पष्टतः तीन रूप में अनुभव करते हैं- गर्मी, बरसात और जाड़ा । इनमें जाड़े की रात किसी के लिये स्वर्गिक सुख लेकर आती है। तो किसी के लिए प्राणघातक सिध्द होती है जाड़े में सर्दी के कंपन से बचने के लिए लोग शाम होते ही अपने-अपने घरों में कैद हो जाते हैं। चारों ओर सुनसान वातावरण में कहीं कोई दिखाई नही देता। ठंड से कांपते हुए जानवर की आवाज भी टिदुर जाती है। शाम होते ही बाजार श्मशान की तरह वीरान और सुनसान नजर आने लगता है। सर्दी की रातों में इतना अधिक कुहासा गिरता है कि यातायात की व्यवस्था भी ठप हो जाती है।
जाड़े की रात में ठंड का प्रकोप कई लोगों को अपना ग्रास बना लेता है। यह रात लुभावनी नहीं होती बल्कि शैतान की आकृति की तरह डरावनी भयावह और पीड़ादायक होती है। सुरसा की जमुहाई सी और कुम्भकर्ण के नींद की तरह गहरी जाड़े की रात काटे नही कटती। आसमान पर तारे भी टिठुरते हुए दिखाई देते हैं। रात जैसेजैसे गरमाती है वातावरण आतंकमय होता जाता है। बरफीले पछुआ पवन के आतंक का साम्राज्य सभी को निगल जाना चाहता है। किन्तु धनकुबेरोंसेठ-साहुकारों या वैभव संपन्न लोगों के लिए तो जाड़े की रात एक अनोखे सुख और आनंद की रात होती है। पद्माकर के शब्दों में गुलगुली गिलमेंगलीचा है, गुनीजन हैं, चांदनी है, चिक है, चिरागन की माला है। कहै पद्माकर त्यों गजक गिजा है, सजी सेज है, सुराही है, सुरा है और प्याला है ।
शिशिर के पाला को न व्यापत कसाला तिन्हैं। जिनके अधीन एते उदित मसाला है। तान तुक ताला है, विनोद के रसाला है, सुबाला है, दुशाला है, विशाल चित्रशाला है। जी हां, यह जाड़े की रात पैसे वालों का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाती। मोटे-मोटे लिहाफों और गद्दों में लिपटे लोग सर्दी के सर्पदंश से बचे रहते हैं। इनके लिए यह रात कुदरत की भेंट और ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। अमीरी के सुरक्षा कवच से टकराकर शैत्य के तीखे वाण विलीन हो जाते हैं। किन्तु जिनके पास न खाने के लिए अन्न है, न तन ढंकने के लिए वस्त्र।
जो चीथड़ों में लिपटे खुले आसमान के नीचे किसी फुटपाथ पर या तंग गलियों में किसी तरह अपना गुजारा करते हैं, ऐसे अभागों के लिए यह रात प्रकृति का सबसे बड़ा अभिशाप बनकर आती है। यह रात अभावग्रस्तता की पंगु जिदंगी का भार ढोते हुए दीन-हीन लोगों के अस्तित्व को निगल जाने के लिए प्रस्तुत रहती है।
बेचारे गरीब के पोर-पोर में घुसती हुई ठंड की लहरें उन्हें अभाव की सूईयों की तीखी चुभन का एहसास दिलाती है और वे इस काल-रात्रि के टलने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। भगवान से प्रार्थना करते हैं कि कब सरसों के फूलों पर मीठी-मीठी धूप खिलेगी और वे प्रकृति के खुले आगंन में उस धूप को तापकर चहकेंगेगाएगें और भीड़भरे फुटपाथों के किसी ओर बैठकर अपने अभाव ग्रस्त भाईयों के साथ गुलछर्रे छोड़ते हुए सर्द रातों में फैले हुए दुःख दर्द भूल जाएंगे।